Tuesday, June 17, 2025

Himachal

आत्मनिर्भर व सुदृढ़ ग्रामीण अर्थव्यस्था का मजबूत आधार ‘प्राकृतिक खेती पद्धति’

May 26, 2025 02:23 PM

आत्मनिर्भर व सुदृढ़ ग्रामीण अर्थव्यस्था का मजबूत आधार ‘प्राकृतिक खेती पद्धति’

हिमाचल प्रदेश में पिछले कुछ वर्षों में किसान व बागवान प्राकृतिक खेती पद्धति की ओर अधिकाधिक संख्या में आकर्षित हुए हैं और उन्होंने रसायन मुक्त खेती को अपनाया है। वर्तमान में प्रदेश में 99.3 प्रतिशत पंचायतों में प्राकृतिक पद्धति से खेती की जा रही है और 2 लाख 23 हजार किसानों और बागवानों ने प्राकृतिक खेती को पूर्णतः या आंशिक रूप से अपनाया है। मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंद्र सिंह सुक्खू के नेतृत्व में राज्य सरकार द्वारा ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने तथा किसानों और बागवानों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए महत्वकांक्षी निर्णयों की भूमिका श्रेयस्कर हैं। इसी के परिणामस्वरूप प्रदेश में भारी संख्या में किसान व बागवान, रसायन मुक्त खेती की ओर अग्रसर हो रहे हैं।
वर्तमान राज्य सरकार ने किसानों को आत्मनिर्भर बनाने, उनके लिए अतिरिक्त आय सृजन के विकल्प तलाशने, उनकी उपज के वाजिब दाम दिलाने, गुणवत्तापूर्ण बीज उपलब्ध करवाने, सिंचाई सुविधाओं का विस्तार करने, फसल बीमा सुनिश्चित करने, किसानों को आवश्यक प्रशिक्षण और अनुसंधान को बढ़ावा देने सहित अन्य सभी महत्वपूर्ण कृषि क्षेत्र के घटकों पर विशेष ध्यान दिया है। कृषि क्षेत्र को मजबूती प्रदान करने के लिए सरकार हर पहलू पर ध्यान केन्द्रित करते हुए नवीन योजनाएं ला रही है। इन योजनाओं के लाभ जमीनी स्तर पर अतिशीघ्र मिले, इसके लिए बेहतरीन प्रबंधन के माध्यम से सभी योजनाओं का सफल क्रियान्वयन सुनिश्चित किया जा रहा है।
सरकार द्वारा गत अढाई वर्षों में किसान हित में जो निर्णय लिए गए हैं वह अप्रत्याशित और ऐतिहासिक हैं। प्रदेश में पहली बार प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देते हुए वर्तमान सरकार द्वारा इस पद्धति से उगाई विभिन्न फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित किया गया। प्राकृतिक खेती से उगाई मक्की पर गत वर्ष 30 रुपये प्रति किलोग्राम का समर्थन मूल्य निर्धारित किया गया था। इस निर्णय से किसानों में जो खुशी की लहर देखने को मिली और रसायन मुक्त खेती की ओर जिस गति से रूझान बढ़ता दिखा उसके दृष्टिगत प्रदेश सरकार ने इस वित्तीय वर्ष से समर्थन मूल्य को 30 रुपये से बढ़ाकर 40 रुपये प्रतिकिलो किया। राज्य सरकार द्वारा अब तक 1509 किसानों से लगभग 400 मीट्रिक टन मक्की की खरीद समर्थन मूल्य पर की गई है। इसी प्रकार गेहूं पर भी 60 रुपये प्रति किलोग्राम का समर्थन मूल्य दिया जा रहा है और इसकी खरीद प्रक्रिया भी जारी है।
प्रदेश सरकार को प्राकृतिक खेती उत्पाद पर समर्थन मूल्य प्रदान करने से कृषि समुदाय की जो सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है उससे प्रेरित होकर सरकार ने चरणबद्ध तरीके से प्राकृतिक पद्धति से उगाई गई कच्ची हल्दी पर भी न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रदान करने का निर्णय लिया है। इस वित्त वर्ष से राज्य सरकार ने प्राकृतिक खेती से उगाई गई कच्ची हल्दी पर 90 रुपये प्रतिकिलो का समर्थन मूल्य प्रदान कर रही है। इस हल्दी को प्रसंस्कृत कर ‘हिमाचल हल्दी’ के नाम से बाजार में उतारा जाएगा।
राज्य सरकार ने प्रदेश के 9.61 लाख किसानों को चरणबद्ध तरीके से प्राकृतिक खेती विधि से जोड़ने का लक्ष्य निर्धारित किया है। प्राकृतिक खेती से उगाए गए उत्पादों की बिक्री के लिए 10 मंडियों में स्थान निर्धारित कर आधारभूत ढांचे का निर्माण किया जा रहा है। वित्त वर्ष 2023-24 और 2024-25 में प्रदेश में कार्यान्वित प्राकृतिक खेती खुशहाल योजना के अंतर्गत 27.60 करोड़ रुपये व्यय किए गए हैं तथा इस वित्त वर्ष के लिए 7.28 करोड़ रुपये का वित्तीय प्रावधान किया गया है। इस योजना का मार्गदर्शन राज्य स्तर पर मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंद्र सिंह सुक्खू की अध्यक्षता वाली शीर्ष समिति कर रही है। इस समिति का संचालन एवं निगरानी मुख्य सचिव की अध्यक्षता में गठित विशेष कार्यबल कर रहा है।
किसानों को प्राकृतिक खेती के प्रति प्रोत्साहित करने के लिए राज्य सरकार द्वारा उन्हें विभिन्न प्रकार के अनुदान भी प्रदान किए जा रहे हैं। आदान बनाने के लिए ड्रम खरीद पर 750 रुपये प्रति ड्रम के तौर पर अधिकतम 2250 रुपये अनुदान का प्रावधान है। प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों को गौशाला का फर्श पक्का करने और गौमूत्र हेतू गड्ढा बनाने के लिए 8 हजार रुपये प्रदान किए जा रहे हैं। भारतीय नस्ल की गाय की खरीद पर 50 प्रतिशत या अधिकतम 25000 रुपये अनुदान दिया जा रहा है। गाय के परिवहन के लिए 5 हजार रुपये की अतिरिक्त धनराशि का भी प्रावधान है।
प्राकृतिक खेती पद्धति की अन्य विशेषता इसका शून्य लागत खेती होना है। लागत के शून्य होने से एक ओर जहां किसानों की आय में वृद्धि होती है वहीं इस बचत से किसानों के जीवन स्तर में आशातीत सुधार होते हैं। प्राकृतिक विधि से उगाया हुआ अनाज पौष्टिक होता है और रसायन का इस्तेमाल न होने से भूमि की उर्वर क्षमता भी गुणवत्तापूर्ण बनी रहती है। राज्य सरकार द्वारा प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की पहल और इस दिशा में किए जा रहे कार्य ग्रामीण एवं कृषि अर्थव्यवस्था के सुदृढ़ीकरण में निश्चित रूप से सराहनीय प्रयास है।

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